आज कशमकश के दागे ऐसे टूटे है,समझ लो
जैसे मोतिया बिखरी हो समंदर में, समेट लो
टूटी हुई आश के पीछे चल पड़ा अब,सीधी पंगती में
विश्वाश में ही विष का वास था,झेल लो
अधूरी लिखावट को कहानी मान पड़ा था,गलती से
बिना सब जाने ही अपना मान चुका था, जल्दी से
आज ठंड लग रही पर फिर भी बारिश चाहता हूं
अपनो की गलती जान कर भी उनके पास जाना चाहता हूं
आज मौत फिर से दस्तक दी है दरवाजे पर, स्वागत है
रात काली है किसी दर्द के आने की अब , आहट है
चल ना बहुत तजुर्बा आ गया है दिखावटी बनावट का
अब तो लगता है इंसान के पीछे मुखोटो की सजावट है।।
©कव्यप्रिंस
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