वो समुद्र की तरह थे, गहरे और शांत,
मुस्कान इतनी प्यारी, जैसे-फूलों की सुंदर सी फुलवारी,
स्वभाव इतना शीतल, जैसे-कड़ी धूप में इकलौता हरा -भरा पीपल,
वो समुद्र की तरह थे, गहरे और शांत,
नादान से बच्चे की तरह करते थे बातें, कभी -कभी
बातें ऐसी, जैसे - नासमझी से ज़िंदगी की कहानी सुना रहे हों,
रूठना तो उन्हें,क्या खूब आता था,
कहीं उनकी तबियत खराब ना हो जाएं,
ये सोच कर जब पापा, घर से बाहर जाने को मना करते थे,
फिर देखो उनका ड्रामा - कैसे गुस्से से मुंह फूला कर नाक सुकड़ते थे।
रूठना तो उन्हें, क्या खूब आता था,
जब वो कहीं जाते तो घर सुना कर जाते,
हर शक्श की नज़रे उन्हीं को तलाश करती,
याद उन्हीं को करके, बस उन्हीं की बात करती।
वो समुद्र की तरह थे, गहरे और शांत,
जब पता चला,उनकी तबीयत खराब हैं,
उदासी का मंजर,काले बादलों को तरह छा रहा था।
बुरे विचारो का सैलाब, तेजी से आ रहा था,
और घर हर शक्श झूठा सा मुस्कुरा रहा था।
जब पता चला,उनकी तबीयत खराब हैं
वो समुद्र की तरह थे, गहरे और शांत,
मेरी कविता के हर किस्से, उन्हीं की जिंदगी के हैं हिस्से।
©Nik JAT
#प्यारे बाबा