देर कर दी तुमने हमें ढूंढने में
अगर मिलते पहले तो कोई पाबन्दी न होती
करते शान से तुमसे बेइंतहा मोहब्बत
न होती कोई बंदिशे, न होता समाज का डर
न होती कोई झिझक, न होती कोई फिकर
बस तुम और हम, और हमारे बेशुमार ज्जबात
क्या तुम समझ पाओगे, हमे या हमारी खामोशी को
शायद समझ जाओ, या शायद समझना न चाहो
कभी सोचते थे हम कि ऐसे कैसे प्यार हो जाता है
मगर आज समझ आ गया, प्यार तो ऐसे ही हो जाता है
प्यार तो वो खुशबू है, जो दूर से भी अपने होने का एहसास कराती हैं
अधूरे ज्जबात ,एक शायरा की कलम से