"यही जीवन है...
अनजानों की बस्ती में...
कहीं गुम हो जाना...
मंजिल की खोज में यूं...
राह भूल जाना...
तारों की छाव में...
यूं रात को गुजारना...
जिमेदारियों के भोज तले...
यूं आसुओं को छुपाना...
अंधेरों से डर लगे...
तो चांद को निहारना...
मन बहलाने को अपना...
यूं अंधेरों को स्वीकारना...
ज़िंदगी की भाग-दौड़ में...
तेरा खुद को पहचानना...
डूबती नैया को...
साहस से पर उतारना...
तू ना डरना कभी...
कभी ना हार मानना...
इस जीवन की कश्ती को...
तुझे है पार तारना...
तुझे है पार तारना...
तू कभी ना हार मानना...
©Mahnoor
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