वीर की जवानी देखो, इरादा ये तूफानी देखो,
एक एक कर गोली खाते ही चले गये,
बात हो ये जंग की, जवान की उमंग की,
कि लाल लहू में होली मनाते ही चले गये।
दुश्मन को देना दंड था, क्योंकि उसे घमंड था,
छोटे बड़े शत्रु सामने आते ही चले गये,
युद्ध बड़ा भीषण था, हौसलों का परीक्षण था,
भाग सारे अरि दुम दबाते ही चले गये।
द्वन्द्व का ये ताप देखो, वैरी का संताप देखो,
मुंह की खाये सारे लड़खड़ाते ही चले गये,
देश रहे ये महान, हीरों की है ये खान,
जो भी लड़े वो जीत पाते ही चले गये।
भू, जल, आकाश, सभी में है प्रकाश,
देशप्रेम का झंडा लहलाहते ही चले गये,
पदकों की कमी नहीं है, वैरी को ज़मीं नहीं है,
कितने साल आए, कितने जाते ही चले गये।
©Kusumakar Muralidhar Pant
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