किसी के इश्क़ में बीमार थे हम कभी , कितनी बातों के | हिंदी Shayari

"किसी के इश्क़ में बीमार थे हम कभी , कितनी बातों के राज़दार थे हम कभी l जब तक दीदार ना हो बेचैन घूमते थे, किसी के लिए यूँ बेक़रार थे हम कभी l सिखाते हो उल्फत की बारीकियां मुझे, आशिकी के सिपह सलार थे हम कभी l सारी रात गुजरती रही ख्वाब सजाने में, किसी को जगाने के गुनाहगार थे हम कभी l कोई हर बात में मेरा ज़िक्र चाहता था और, किसी की दुनियाँ ,किसी प्यार थे हम कभी l पता नहीं था दरिया के दो किनारे रहे हम , सामने रहे पर मिलने को बेकरार थे हम कभी l मिलना नहीं था यही मुकद्दर रहा जो अपना फ़िर भी आशिकी के नाव पर सवार थे हम कभी l @निश्छल किसलय ©"निश्छल किसलय" (KISALAY KRISHNAVANSHI)"

 किसी के इश्क़ में बीमार थे हम कभी ,
कितनी बातों के राज़दार थे हम कभी l

जब तक दीदार ना हो बेचैन घूमते थे, 
किसी के लिए यूँ बेक़रार थे हम  कभी l

सिखाते हो उल्फत की बारीकियां मुझे, 
आशिकी के सिपह सलार थे हम कभी l

सारी रात गुजरती रही ख्वाब सजाने में, 
किसी को जगाने के गुनाहगार थे हम कभी l

कोई हर बात में मेरा ज़िक्र चाहता था और, 
किसी की दुनियाँ ,किसी प्यार थे हम कभी l

पता नहीं था दरिया के दो किनारे रहे हम ,
सामने रहे पर मिलने को बेकरार थे हम कभी l

मिलना नहीं था यही मुकद्दर रहा जो अपना 
फ़िर भी आशिकी के नाव पर सवार थे हम कभी l
@निश्छल किसलय

©"निश्छल किसलय" (KISALAY KRISHNAVANSHI)

किसी के इश्क़ में बीमार थे हम कभी , कितनी बातों के राज़दार थे हम कभी l जब तक दीदार ना हो बेचैन घूमते थे, किसी के लिए यूँ बेक़रार थे हम कभी l सिखाते हो उल्फत की बारीकियां मुझे, आशिकी के सिपह सलार थे हम कभी l सारी रात गुजरती रही ख्वाब सजाने में, किसी को जगाने के गुनाहगार थे हम कभी l कोई हर बात में मेरा ज़िक्र चाहता था और, किसी की दुनियाँ ,किसी प्यार थे हम कभी l पता नहीं था दरिया के दो किनारे रहे हम , सामने रहे पर मिलने को बेकरार थे हम कभी l मिलना नहीं था यही मुकद्दर रहा जो अपना फ़िर भी आशिकी के नाव पर सवार थे हम कभी l @निश्छल किसलय ©"निश्छल किसलय" (KISALAY KRISHNAVANSHI)

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