दूर कहीं इक लड़की है दरिया से भी गहरी है
रंगों की दुनिया में घुल वो सपनों को लिखती है
खुद को खोकर अक्सर वो खुद को ढूंढा करती है
पार करे सागर कैसे उसकी कश्ती टूटी है
सुनती क्यूं न किसी की भी
कहती उसकी खामोशी खुद से बातें करती है
प्यार की खातिर, सहरा बनकर फिरती है
बातों से मिसरी घोले खट्टी मीठी इमली है
भीतर से बिखरी बिखरी फिर भी हँसती रहती है
कैसे उसको छू पाए उड़ती फिरती तितली है
सजती न सँवरती फिर भी चश्मिश अच्छी लगती है.
©Asif
#ChildrensDay