सर्जना में भावना के जागरण की बात हो।
हो सृजन तो शिल्प में भी व्याकरण की बात हो।
है क्षरित संवेदना परिवेश दूषित हो गया,
व्यक्ति के व्यक्तित्व में अब आचरण की बात हो।
मात्र अवसरवाद से मिलती सफलताएँ नहीं,
सत्य पथ की नीतियों के अनुसरण की बात हो।
भूल पाया कौन छुटपन से जुड़ी शैतानियाँ,
आज बचपन से जुड़े वातावरण की बात हो।
जिन विसंगतियों से जूझी झोपड़ी की सिसकियाँ,
उन अभावों से पगे अंतःकरण की बात हो।
लक्ष्य आभारी सदा होता रहा है पंथ का,
किंतु पथ पर चल पड़े पहले चरण की बात हो।
©ShrimanTripathi
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