White आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा वक़्त का क् | हिंदी Poetry

"White आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है ये जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो अभी तो जाग रहे हैं चराग़ राहों के अभी है दूर सहर थोड़ी दूर साथ चलो जब भी दिल खोल के रोए होंगे लोग आराम से सोए होंगे तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल हार जाने का हौसला है मुझे कितना आसाँ था तिरे हिज्र में मरना जानाँ फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते जाते याद आई है तो फिर टूट के याद आई है कोई गुज़री हुई मंज़िल कोई भूली हुई दोस्त शहर-वालों की मोहब्बत का मैं क़ाएल हूँ मगर मैं ने जिस हाथ को चूमा वही ख़ंजर निकला ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते जो आज तो होते हैं मगर कल नहीं होते ज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का 'फ़राज़' ज़ालिम अब के भी न रोएगा तो मर जाएगा ©RJ VAIRAGYA"

 White आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा

तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है
ये जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो

अभी तो जाग रहे हैं चराग़ राहों के
अभी है दूर सहर थोड़ी दूर साथ चलो

जब भी दिल खोल के रोए होंगे
लोग आराम से सोए होंगे

तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौसला है मुझे

कितना आसाँ था तिरे हिज्र में मरना जानाँ
फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते जाते

याद आई है तो फिर टूट के याद आई है
कोई गुज़री हुई मंज़िल कोई भूली हुई दोस्त

शहर-वालों की मोहब्बत का मैं क़ाएल हूँ मगर
मैं ने जिस हाथ को चूमा वही ख़ंजर निकला

ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते
जो आज तो होते हैं मगर कल नहीं होते

ज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का 'फ़राज़'
ज़ालिम अब के भी न रोएगा तो मर जाएगा

©RJ VAIRAGYA

White आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है ये जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो अभी तो जाग रहे हैं चराग़ राहों के अभी है दूर सहर थोड़ी दूर साथ चलो जब भी दिल खोल के रोए होंगे लोग आराम से सोए होंगे तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल हार जाने का हौसला है मुझे कितना आसाँ था तिरे हिज्र में मरना जानाँ फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते जाते याद आई है तो फिर टूट के याद आई है कोई गुज़री हुई मंज़िल कोई भूली हुई दोस्त शहर-वालों की मोहब्बत का मैं क़ाएल हूँ मगर मैं ने जिस हाथ को चूमा वही ख़ंजर निकला ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते जो आज तो होते हैं मगर कल नहीं होते ज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का 'फ़राज़' ज़ालिम अब के भी न रोएगा तो मर जाएगा ©RJ VAIRAGYA

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वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा

तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है
ये जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो

अभी तो जाग रहे हैं चराग़ राहों के
अभी है दूर सहर थोड़ी दूर साथ चलो

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