ये दौर है या इंसानियत का जनाजा,
जहाँ दौलत ने रिश्तों को बना दिया तमाशा।
सच का चेहरा धुंध में गुम सा है,
हर दिल अब झूठ के संग चुप सा है।
मोहरे बन गए हैं इन्साफ के दरबार में,
अब सच के शब्द भी बिकते बाज़ार में।
हर उसूल को, हर कसम को भुला दिया,
सच और झूठ का फर्क मिटा दिया।
खून पसीने से जो पहचान बनाई थी,
आज उसी पर सौदे की बारी आई थी।
वो मेहनत, वो इज्जत, वो सच्चाई का नाम,
अब बिक रहा है झूठ के इल्जाम।
©नवनीत ठाकुर
#इंसानियत का ज़नाजा