भला क्यूं ना रहुं मैं फिक्रजादा कि मैं एक बेटी की | हिंदी Poetry

"भला क्यूं ना रहुं मैं फिक्रजादा कि मैं एक बेटी की मां हुं नजरे लगी रहती हैं उसी पर रह ना जाए मुझसे कोई कमी कहीं पर महीनों के उन दिनों के बारे में बतलाना है खुद को कैसे संभाले ये उन्हें सिखलाना है करानी है उन्हें पहचान उन निगाहों की अच्छे बुरे बदलते हुए जमानों की बताना है उसे शारीरिक बदलाव का होना आसान नहीं होता एक बेटी की मां होना जो चलती थी कभी घुटनों पर कब वो खड़ी हो गई पता ही नहीं चलता कि ये बेटियां कब बड़ी हो गई ©Garima Srivastava"

 भला क्यूं ना रहुं मैं फिक्रजादा 
कि मैं एक बेटी की मां हुं 

नजरे लगी रहती हैं उसी पर
रह ना जाए मुझसे कोई कमी कहीं पर

महीनों के उन दिनों के बारे में बतलाना है 
खुद को कैसे संभाले ये उन्हें सिखलाना है 

करानी है उन्हें पहचान उन निगाहों की
अच्छे बुरे बदलते हुए जमानों की 

बताना है उसे शारीरिक बदलाव का होना
आसान नहीं होता एक बेटी की मां होना

जो चलती थी कभी घुटनों पर 
कब वो खड़ी हो गई 

पता ही नहीं चलता कि 
ये बेटियां कब बड़ी हो गई

©Garima Srivastava

भला क्यूं ना रहुं मैं फिक्रजादा कि मैं एक बेटी की मां हुं नजरे लगी रहती हैं उसी पर रह ना जाए मुझसे कोई कमी कहीं पर महीनों के उन दिनों के बारे में बतलाना है खुद को कैसे संभाले ये उन्हें सिखलाना है करानी है उन्हें पहचान उन निगाहों की अच्छे बुरे बदलते हुए जमानों की बताना है उसे शारीरिक बदलाव का होना आसान नहीं होता एक बेटी की मां होना जो चलती थी कभी घुटनों पर कब वो खड़ी हो गई पता ही नहीं चलता कि ये बेटियां कब बड़ी हो गई ©Garima Srivastava

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