भला क्यूं ना रहुं मैं फिक्रजादा
कि मैं एक बेटी की मां हुं
नजरे लगी रहती हैं उसी पर
रह ना जाए मुझसे कोई कमी कहीं पर
महीनों के उन दिनों के बारे में बतलाना है
खुद को कैसे संभाले ये उन्हें सिखलाना है
करानी है उन्हें पहचान उन निगाहों की
अच्छे बुरे बदलते हुए जमानों की
बताना है उसे शारीरिक बदलाव का होना
आसान नहीं होता एक बेटी की मां होना
जो चलती थी कभी घुटनों पर
कब वो खड़ी हो गई
पता ही नहीं चलता कि
ये बेटियां कब बड़ी हो गई
©Garima Srivastava
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