इच्छाएंँ सब अनगढ़ सी हैं, सपनों का आकार नहीं है। म | हिंदी Shayari

"इच्छाएंँ सब अनगढ़ सी हैं, सपनों का आकार नहीं है। मानव से मानव का संयत, होता अब व्यापार नहीं है। फिर भी है उम्मीद कि कोई साथ चलेगा मरघट तक? जीवन-गीतों का ही जबकि, कोई संगत-कार नहीं है। ©®अरुण शुक्ल ‘अर्जुन' प्रयागराज . ©अरुण शुक्ल ‘अर्जुन'"

 इच्छाएंँ सब अनगढ़ सी हैं, सपनों का आकार नहीं है।
मानव से मानव का संयत, होता अब व्यापार नहीं है।
फिर भी है उम्मीद कि कोई साथ चलेगा मरघट तक?
जीवन-गीतों का ही जबकि, कोई संगत-कार नहीं है।
©®अरुण शुक्ल ‘अर्जुन'
 प्रयागराज













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©अरुण शुक्ल ‘अर्जुन'

इच्छाएंँ सब अनगढ़ सी हैं, सपनों का आकार नहीं है। मानव से मानव का संयत, होता अब व्यापार नहीं है। फिर भी है उम्मीद कि कोई साथ चलेगा मरघट तक? जीवन-गीतों का ही जबकि, कोई संगत-कार नहीं है। ©®अरुण शुक्ल ‘अर्जुन' प्रयागराज . ©अरुण शुक्ल ‘अर्जुन'

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