पत्नी घूम रहे थे बेलगाम हो बन गलियों में छुट्टा मन | हिंदी कविता

"पत्नी घूम रहे थे बेलगाम हो बन गलियों में छुट्टा मन लालचाये देख सुनहरा उड़ता हुआ दुपट्टा परेशान हो रब ने बाँधा आज एक खूँटे से जिससे दूर नहीं जा सकते अपने बल बूते से उसके चारो तरफ घूमना मजबूरी है अपनी कोई कहता है घरवाली कोई कहता पत्नी बेखुद गलत राह चलने से हरदम हमें बचाती कभी नाचती खुद ऊँगली पर हमको कभी नचाती ©Sunil Kumar Maurya Bekhud"

 पत्नी
घूम रहे थे बेलगाम हो
बन गलियों में छुट्टा
मन लालचाये देख सुनहरा
उड़ता हुआ दुपट्टा

परेशान हो रब ने बाँधा
आज एक खूँटे से
जिससे दूर नहीं जा सकते
अपने बल बूते से

उसके चारो तरफ घूमना
मजबूरी है अपनी
कोई कहता है घरवाली
कोई कहता पत्नी

बेखुद गलत राह चलने से
हरदम हमें बचाती
कभी नाचती खुद ऊँगली पर
हमको कभी नचाती

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

पत्नी घूम रहे थे बेलगाम हो बन गलियों में छुट्टा मन लालचाये देख सुनहरा उड़ता हुआ दुपट्टा परेशान हो रब ने बाँधा आज एक खूँटे से जिससे दूर नहीं जा सकते अपने बल बूते से उसके चारो तरफ घूमना मजबूरी है अपनी कोई कहता है घरवाली कोई कहता पत्नी बेखुद गलत राह चलने से हरदम हमें बचाती कभी नाचती खुद ऊँगली पर हमको कभी नचाती ©Sunil Kumar Maurya Bekhud

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