सासुओं ने बहुओं पे सालों साल ज़ुल्म ढ़ाया, सास ने | हिंदी कविता

"सासुओं ने बहुओं पे सालों साल ज़ुल्म ढ़ाया, सास ने ख़ुद सहे जुल्मों के बदले बहू को सताया ! अशिक्षित को गुलाम व अर्द्धशिक्षित को नौकरानी, कामकाजी पे भी बचे समय में घर काम का बोझा ढ़ाया !! परिणामस्वरूप बहुओं ने बाज़ी पलट दी अब, उच्चशिक्षा ग्रहण करने की कोशिशें कर रही सब ! पुरुषों से आगे निकलने की लगी है होड़, जड़ मूल से मिटा रही जुल्मों सितम का सबब !! जिन सासुओं परिस्थितियों से किया नहीं समझौता, पुत्र का तलाक़ हुआ या खुद हुई वृद्धाश्रम को बिदा ! शादियाँ भी खानापूर्ति बन कर रह गई, युवतियां शादी के नाम से ही होती घरवालों से ख़फ़ा !! शादी सभ्य स्वस्थ सुदृढ़ समाज की है नींव, शादी से ही सम्भव है धरती पर इंसानी जीव ! लालन-पालन से संस्कारों का संचार होता, आज का विकृत समाज इस मुद्दे पे नहीं संजीद !! समाज़ के सभ्य संपन्न निस्वार्थी वर्ग ने एकजुट होना है, इस परिस्थिति से बाहर निकलने का पर्याय खोजना है ! तभी सिर्फ़ तभी हमें संस्कारी समाज के दर्शन सम्भव, जब तक न सुधरे परिस्थितियां, चैन से नहीं बैठना है !! - आवेश हिंदुस्तानी 29.09.2024 ©Ashok Mangal"

 सासुओं ने बहुओं पे सालों साल ज़ुल्म ढ़ाया,
सास ने ख़ुद सहे जुल्मों के बदले बहू को सताया !
अशिक्षित को गुलाम व अर्द्धशिक्षित को नौकरानी,
कामकाजी पे भी बचे समय में घर काम का बोझा ढ़ाया !!

परिणामस्वरूप बहुओं ने बाज़ी पलट दी अब,
उच्चशिक्षा ग्रहण करने की कोशिशें कर रही सब !
पुरुषों से आगे निकलने की लगी है होड़,
जड़ मूल से मिटा रही जुल्मों सितम का सबब !!

जिन सासुओं परिस्थितियों से किया नहीं समझौता,
पुत्र का तलाक़ हुआ या खुद हुई वृद्धाश्रम को बिदा !
शादियाँ भी खानापूर्ति बन कर रह गई,
युवतियां शादी के नाम से ही होती घरवालों से ख़फ़ा !!

शादी सभ्य स्वस्थ सुदृढ़ समाज की है नींव,
शादी से ही सम्भव है धरती पर इंसानी जीव !
लालन-पालन से संस्कारों का संचार होता,
आज का विकृत समाज इस मुद्दे पे नहीं संजीद !!

समाज़ के सभ्य संपन्न निस्वार्थी वर्ग ने एकजुट होना है,
इस परिस्थिति से बाहर निकलने का पर्याय खोजना है !
तभी सिर्फ़ तभी हमें संस्कारी समाज के दर्शन सम्भव, 
जब तक न सुधरे परिस्थितियां, चैन से नहीं बैठना है !!

- आवेश हिंदुस्तानी 29.09.2024

©Ashok Mangal

सासुओं ने बहुओं पे सालों साल ज़ुल्म ढ़ाया, सास ने ख़ुद सहे जुल्मों के बदले बहू को सताया ! अशिक्षित को गुलाम व अर्द्धशिक्षित को नौकरानी, कामकाजी पे भी बचे समय में घर काम का बोझा ढ़ाया !! परिणामस्वरूप बहुओं ने बाज़ी पलट दी अब, उच्चशिक्षा ग्रहण करने की कोशिशें कर रही सब ! पुरुषों से आगे निकलने की लगी है होड़, जड़ मूल से मिटा रही जुल्मों सितम का सबब !! जिन सासुओं परिस्थितियों से किया नहीं समझौता, पुत्र का तलाक़ हुआ या खुद हुई वृद्धाश्रम को बिदा ! शादियाँ भी खानापूर्ति बन कर रह गई, युवतियां शादी के नाम से ही होती घरवालों से ख़फ़ा !! शादी सभ्य स्वस्थ सुदृढ़ समाज की है नींव, शादी से ही सम्भव है धरती पर इंसानी जीव ! लालन-पालन से संस्कारों का संचार होता, आज का विकृत समाज इस मुद्दे पे नहीं संजीद !! समाज़ के सभ्य संपन्न निस्वार्थी वर्ग ने एकजुट होना है, इस परिस्थिति से बाहर निकलने का पर्याय खोजना है ! तभी सिर्फ़ तभी हमें संस्कारी समाज के दर्शन सम्भव, जब तक न सुधरे परिस्थितियां, चैन से नहीं बैठना है !! - आवेश हिंदुस्तानी 29.09.2024 ©Ashok Mangal

#AaveshVaani
#JanMannKiBaat

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