White चल रहा था कोई धंधा
हो रहा था कुछ तो गंदा
जो उसकी आंखो ने देख लिया
जिसका उसकी जुबा ने विरोध किया।
उसकी सजा, उसने इतनी भयंकर पाई
शायद, गुनाह किया, उसने
, जो आवाज़ उठाई।
अंग अंग से उसके खून बहा
शैतानों की भूख का, उसने
ना जाना कितना दर्द सहा।
चली गईं वो इस दुनिया से
रूह अभी भी उसकी तड़पती होगी
हे, दुर्गा, हे चंडी,, कहां हो मां
यह कहती होगी।
हे मां, कब आप काली का
रूप धरोगी
कब इन राक्षसों का संहार करोगी।
मेरे रक्त की हर बूंद का
बदला आपको लेना होगा
कल युग की इस दुनिया में
तुझे फिर आना होगा।
,मां सुन लो एक बेटी की पुकार
बचा लो औरत के अस्तित्व को
कर दो दुष्टों का संहार।
निसंकोच (स्वरचित)
©Nisankoch Singh
#isro_day