तलाश में तेरी नज़र मेरी नजाने कितना भटकी है, है अस | हिंदी शायरी

"तलाश में तेरी नज़र मेरी नजाने कितना भटकी है, है असर तेरा ही जो एक जगह पे ये इतना अटकी है, ख़ुद को तराशने की चाह मुझमें जगी है सदियों बाद, तेरी वजह से आदतें जीने कि मुझमें ऐसी बदली हैं। ©Akash Kedia"

 तलाश में तेरी नज़र मेरी नजाने कितना भटकी है,
है असर तेरा ही जो एक जगह पे ये इतना अटकी है,
ख़ुद को तराशने की चाह मुझमें जगी है सदियों बाद,
तेरी वजह से आदतें जीने कि मुझमें ऐसी बदली हैं।

©Akash Kedia

तलाश में तेरी नज़र मेरी नजाने कितना भटकी है, है असर तेरा ही जो एक जगह पे ये इतना अटकी है, ख़ुद को तराशने की चाह मुझमें जगी है सदियों बाद, तेरी वजह से आदतें जीने कि मुझमें ऐसी बदली हैं। ©Akash Kedia

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