आज गुज़रे जो उनकी गली से, दिन बहारों के फिर याद आए
उठ गया दर्द का इक तलातुम, ऑंसुओं को न हम रोक पाए
कैसे भूलें वो लम्हा क़हर का, बर्क़ सी जब गिरी थी जिगर पर
थामकर हाथ इक ग़ैर का वो एक पल में हुए थे पराए
क्या फलक के दरख़्शाॅं सितारे क्या ये रंगीन दिलकश नज़ारे
उनके किस काम के हैं ये आख़िर जिन के दिल पे ॳॅधेरे हैं छाए