साली नहीं, सखी है मेरी धर्मपत्नी की प्यारी,
उसके बिना हर खुशी लगे अधूरी, हर हँसी है हारी।
वो है संगिनी उसकी, उसकी हर बात की राजदार,
उनकी दोस्ती में है खुशियों का संसार।
धर्मपत्नी की सखी, उसकी हंसी का आधार,
उसकी मुस्कान में है सुकून, उसकी आँखों में है प्यार।
जब वो साथ होती हैं, चहकता है हर कोना,
उनकी बातें सुनकर दिल भी कहे, "यह है सच्चा सोना।"
उनकी दोस्ती की मिठास, उनके रिश्ते का गहरापन,
हर पल को बना देता है खास, हर दिन को देता है नयापन।
साथ हँसती, साथ रोती, हर सुख-दुख में है साथ,
उनकी दोस्ती में है जैसे विश्वास का अटूट हाथ।
मेरी धर्मपत्नी की सखी, उसकी खुशी की साथी,
उनके बिना जीवन लगे अधूरा, उनकी हर याद है प्यारी।
वो साली नहीं, सखी है, उसकी जीवन की साथी,
उनकी दोस्ती में है जैसे हर दिन की नई कहानी, हर पल की नई राती।
©Prakhar Tiwari
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