White स्वाभिमान आत्मगौरव के संरक्षण एवं अभ्युदय का | हिंदी विचार

"White स्वाभिमान आत्मगौरव के संरक्षण एवं अभ्युदय का प्रयास है। इसमें आन्तरिक उत्कृष्टता को अक्षुण्ण रखने का साहस होता है। दबाव या प्रलोभन पर फिसल न जाना और औचित्य से विचलित न होना स्वाभिमान है। इसकी रक्षा करने में बहुधा कष्ट कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ता है और दुर्जनों का विरोध भी सहना पड़ता है। मनीषियों का कहना है कि अहंकार मनुष्य को गिराता है। उसे उद्दण्ड और पर पीड़क बनाता है। उसे साथियों को पीछे धकेलने, किसी के अनुग्रह की चर्चा न करने, दूसरों के प्रयासों को हड़प जाने के लिए अहंकार ही प्रेरित करता है ताकि जिस श्रेय की स्वयं कीमत नहीं चुकाई गई है उसका भी लाभ उठा लिया जाय। ऐसे लोग आमतौर से कृतघ्न होते हैं और अपनी विशेषताओं और सफलताओं का उल्लेख बढ़-चढ़ कर बार-बार करते हैं। नम्रता, विनयशीलता का अभाव होता जाता है और अन्यों को छोटा गिनाने की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है। इस कारण ऐसा व्यक्ति दूसरों की नजरों में निरन्तर गिरता जाता है। घृणास्पद बनता है और इसी कारण कई बार ईर्ष्या, विद्वेष आदि का शिकार बनता है। शत्रुओं की संख्या बढ़ाता है और अन्ततः घाटे में रहता है। आत्म सम्मान की रक्षा करनी हो तो अहंकार से बचना ही चाहिए। ©sanjay Kumar Mishra"

 White स्वाभिमान आत्मगौरव के संरक्षण एवं अभ्युदय का प्रयास है। इसमें आन्तरिक उत्कृष्टता को अक्षुण्ण रखने का साहस होता है। दबाव या प्रलोभन पर फिसल न जाना और औचित्य से विचलित न होना स्वाभिमान है। इसकी रक्षा करने में बहुधा कष्ट कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ता है और दुर्जनों का विरोध भी सहना पड़ता है।
मनीषियों का कहना है कि अहंकार मनुष्य को गिराता है। उसे उद्दण्ड और पर पीड़क बनाता है। उसे साथियों को पीछे धकेलने, किसी के अनुग्रह की चर्चा न करने, दूसरों के प्रयासों को हड़प जाने के लिए अहंकार ही प्रेरित करता है ताकि जिस श्रेय की स्वयं कीमत नहीं चुकाई गई है उसका भी लाभ उठा लिया जाय। ऐसे लोग आमतौर से कृतघ्न होते हैं और अपनी विशेषताओं और सफलताओं का उल्लेख बढ़-चढ़ कर बार-बार करते हैं। नम्रता, विनयशीलता का अभाव होता जाता है और अन्यों को छोटा गिनाने की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है। इस कारण ऐसा व्यक्ति दूसरों की नजरों में निरन्तर गिरता जाता है। घृणास्पद बनता है और इसी कारण कई बार ईर्ष्या, विद्वेष आदि का शिकार बनता है। शत्रुओं की संख्या बढ़ाता है और अन्ततः घाटे में रहता है। आत्म सम्मान की रक्षा करनी हो तो अहंकार से बचना ही चाहिए।

©sanjay Kumar Mishra

White स्वाभिमान आत्मगौरव के संरक्षण एवं अभ्युदय का प्रयास है। इसमें आन्तरिक उत्कृष्टता को अक्षुण्ण रखने का साहस होता है। दबाव या प्रलोभन पर फिसल न जाना और औचित्य से विचलित न होना स्वाभिमान है। इसकी रक्षा करने में बहुधा कष्ट कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ता है और दुर्जनों का विरोध भी सहना पड़ता है। मनीषियों का कहना है कि अहंकार मनुष्य को गिराता है। उसे उद्दण्ड और पर पीड़क बनाता है। उसे साथियों को पीछे धकेलने, किसी के अनुग्रह की चर्चा न करने, दूसरों के प्रयासों को हड़प जाने के लिए अहंकार ही प्रेरित करता है ताकि जिस श्रेय की स्वयं कीमत नहीं चुकाई गई है उसका भी लाभ उठा लिया जाय। ऐसे लोग आमतौर से कृतघ्न होते हैं और अपनी विशेषताओं और सफलताओं का उल्लेख बढ़-चढ़ कर बार-बार करते हैं। नम्रता, विनयशीलता का अभाव होता जाता है और अन्यों को छोटा गिनाने की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है। इस कारण ऐसा व्यक्ति दूसरों की नजरों में निरन्तर गिरता जाता है। घृणास्पद बनता है और इसी कारण कई बार ईर्ष्या, विद्वेष आदि का शिकार बनता है। शत्रुओं की संख्या बढ़ाता है और अन्ततः घाटे में रहता है। आत्म सम्मान की रक्षा करनी हो तो अहंकार से बचना ही चाहिए। ©sanjay Kumar Mishra

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