खुद का दायरा बढ़ा , मुझे सिमटने पर मजबूर कर दिया,

"खुद का दायरा बढ़ा , मुझे सिमटने पर मजबूर कर दिया, मैं सोचता रहा सभी के बारे में, सबने मेरे बारे में सोचना बंद कर दिया.... घनघोर अंधेरा कभी मेरा पहचान हुआ करता था, रोमांचक, अद्भुत, आश्चर्य मेरे लिए इस्तेमाल हुआ करता था, यूं ही कुछ देसी– विदेशी मुझे नजरो और कैमरों में कैद किया करते थे... बेहद खुशी होती है, जब कोई अपना समझता है, मानो जैसे कोई मंदिर का चौखट छूता है, और मुझ पर आहिस्ते से कदम रखता है.. जिंदा हूं मैं क्या दिखाई नही देता, चीखता नही हू , शायद इसीलिए सुनाई नही देता, कभी आओगे नजदीक तो बाते केरेंगे हम, तुम अल्फाज इस्तेमाल करना, जवाब में तुमको मद्धम हवाओ से छू जायेंगे हम... ©Satish agrahari"

 खुद का दायरा बढ़ा ,
मुझे सिमटने पर मजबूर कर दिया,
मैं सोचता रहा सभी के बारे में,
सबने मेरे बारे में सोचना बंद कर दिया....

घनघोर अंधेरा कभी मेरा पहचान हुआ करता था,
रोमांचक, अद्भुत, आश्चर्य मेरे लिए इस्तेमाल हुआ करता था,
यूं ही कुछ देसी– विदेशी मुझे नजरो और कैमरों में कैद किया करते थे...

बेहद खुशी होती है,
जब कोई अपना समझता है,
मानो जैसे कोई मंदिर का चौखट छूता है,
और मुझ पर आहिस्ते से कदम रखता है..

जिंदा हूं मैं क्या दिखाई नही देता,
चीखता नही हू , शायद इसीलिए सुनाई नही देता,
कभी आओगे नजदीक तो बाते केरेंगे हम,
तुम अल्फाज इस्तेमाल करना,
जवाब में तुमको मद्धम हवाओ से छू जायेंगे हम...

©Satish agrahari

खुद का दायरा बढ़ा , मुझे सिमटने पर मजबूर कर दिया, मैं सोचता रहा सभी के बारे में, सबने मेरे बारे में सोचना बंद कर दिया.... घनघोर अंधेरा कभी मेरा पहचान हुआ करता था, रोमांचक, अद्भुत, आश्चर्य मेरे लिए इस्तेमाल हुआ करता था, यूं ही कुछ देसी– विदेशी मुझे नजरो और कैमरों में कैद किया करते थे... बेहद खुशी होती है, जब कोई अपना समझता है, मानो जैसे कोई मंदिर का चौखट छूता है, और मुझ पर आहिस्ते से कदम रखता है.. जिंदा हूं मैं क्या दिखाई नही देता, चीखता नही हू , शायद इसीलिए सुनाई नही देता, कभी आओगे नजदीक तो बाते केरेंगे हम, तुम अल्फाज इस्तेमाल करना, जवाब में तुमको मद्धम हवाओ से छू जायेंगे हम... ©Satish agrahari

#sagarkinare

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