क्यों निश्चिंत हो जाते हैं हम सब जब बेटा जन्म लेता है
चिंता दुगनी हो जानी चाहिए जब बेटा जन्म लेता है,
बेटी के जन्म के साथ ही चिंता उसकी शादी की,उसकी इज्जत की होने लगती है लेकिन वक्त की जरूरत है कि बेटी हो या बेटा, हमें दोनों की ही परवरिश में कुछ जरूरी बातों को शामिल करना चाहिए,महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों को रोकने में कानून से ज्यादा भूमिका माता पिता की अपने बच्चों से बातचीत और संस्कार निभा सकते हैं।इस कविता में ऐसे ही कुछ विचार लिखे हैं मैंने जो मैं अपने बेटे से उम्मीद करती हूं,अभी वो बहुत छोटा है इन बातों को समझने के लिए लेकिन जब वो बड़ा होगा तो मेरी इस कविता को समझ पाएगा।
आज तुम्हारी मां लिखती ये पाती तुमको
स्नेह और प्यार से देती दुआएं तुमको
अभी बहुत हो छोटे तुम नहीं समझ पाओगे
लेकिन जब तुम बड़े होकर दुनियादारी में जाओगे
डर है मुझको ना बहकें कभी कदम तुम्हारे
कभी अपमान ना करना किसी नारी का
यही हैं सदा से दिए गए संस्कार हमारे
ना कहना अपशब्द अपने मुख से किसी नारी को
देना नज़रों से भी सम्मान सदा हर नारी को
कहते हैं सब कि लड़के कभी रोया नहीं करते
मैं कहती हूं तुमसे कि लड़के कभी रुलाया नहीं करते
डॉक्टर,इंजीनियर,जो चाहे वो बनना
लेकिन कभी किसी औरत के आंसुओं की वजह मत बनना
यूं तो अपनी परवरिश पर यकीन है मुझको
लेकिन डर लगता है बदलते दौर की हवाओं से
डर लगता है बुरी संगत के काले सायों से
डर लगता है ये दौरे हवाएं तुमको ना बदल दें
बुरी संगत के काले साए तुमको ना बदल दें
कुछ भी हो अपनी मासूमियत को ना खोने देना
परवरिश मां की कभी कलंकित ना होने देना
गुरुर हो तुम हमारा,इस गुरुर को ना मिटने देना
एक अच्छे इंसान बन राष्ट्र की सेवा करना।।
। ।।।। यशस्वी भव ।।।।
©Shilpi Vikram
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