लाल बहादुर शास्त्री जी की
एक घटना तुम्हें बताऊं।
जब पढ़ते थे बचपन में
पुस्तक लाने को बार-बार अध्यापक कहते।।
निधन पिता के बाद घर की हालत हुई खराब
देने पर आखरी चेतावनी अध्यापक की।
तब मांगी मित्र से पुस्तक उधार
कल दे दूंगा इस वादे के साथ
निश्चित रहो मेरे यार ।।
रात भर बिजली के खंभे के नीचे
हू-ब-हू एक एक शब्द पुस्तक से उतारा।
कॉपी को पुस्तक कर डाला
जब देखा मास्टर जी ने देखकर हुए हैरान ।।
मार्मिक शब्द बहादुर बोले।।
पिता नहीं है मेरे,ना ही इतने पैसे
जो पुस्तक खरीद सकूं
अध्यापक महोदय के छलक पड़े आंसू
आंखों में करुणा उतर आई।।
सिर पर रखा प्यार हाथ से,'बोले बेटा'
"करोगे निश्चय ही तुम एक दिन देश का नाम ।।✍🏻
©Andaaz bayan
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