कोई क्या खेल पाएगा कभी इक रंग से होली
सभी रंगो के मिलन से मुक़म्मल होती ये होली
मिला था मौका सालों बाद उसको तो छुट्टी का आज
सिपाही खेल ने सरहद से आया रंगो से होली
है रंगो को तमन्ना आज उसको बस छू लेने की
लगा पाया नहीं जो रंग जाए ज़ाया ये होली
ये रंगो में सभी रंगे थे हर इक रंग में ऐसे
न रहनी कोई सुंदरता की माया खेल के होली
नहीं मुमकिन जला दे आग सच को ये बुराई की
जलेगी बस बुराई ही बताती यार ये होली
©Dharmendra Barot
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