सजग मगर अचेतन दशा में बैठा मौन मगर,,,
उतावला सा मन....
ढूंढता रहता है उसे जो मेरे सपनों के सिरहाने,,,,
हर रात जलता रहता है..... जैसे कोई दीपक,,
कार्तिक मास का अंतिम पहर भी बीत जाने को है....
मगर जिसकी प्रतीक्षा में अमावस सजाई थी,,,
अनेकों दीपों के साथ,,,
प्रतीक्षा में ही -
अर्ध मास का चक्र पूर्ण हुआ,,
पूर्ण हुआ संपूर्ण जगत का चंद्रमा,,,
मगर खोया हुआ सा है अब तक,,
मेरी आंखों का तारा,,,
नंदिनी,,,
©Nandini..