टूट चुका फिर जो बिखर गया हो उससे मैं दूर नही
जज़्बात उमड़ते, नश्तर चुभते मग़र नशे में चूर नही
बेदर्द को है अब दर्द कहाँ लुट चुका जो हर राहों पे
ज़िंदगी में खुद वैसा हूँ, किसका कहूं कि कसूर नही
गहराई में आ तुम खुद को टटोलो कितने सच्चे हो
जिद मे आकर माखौल उडा़ऊं इतना भी बेशऊर नही
हुश्न तो उम्र के तलवे में आकर झुर्री झुर्री हो जाएगा
इश्क़ में जीऊं और न उतराऊं इतना भी मग़रूर नही
ख़्वाबों से दिल टूटा तो एक एक कर सब छोड़ गए
वादों से मुकरे तुम भी ऐसा रूठा वक़्त हमे मंजूर नही
©kumar ramesh rahi
#जज़्बात #नश्तर #ग़ज़ल #मगरूर #इश्क #मंजूर #ख्वाब #kumarrameshrahi