White ख़्वाब
ख्वाबों से भरा आसमान बचपन से है पाला था,
उम्र जो बढ़ती गई ख़्वाब तारो से है टूटते गए।
आंख जो बंद की तो ख़्वाब सारे जगमगा उठे,
नींद से जो जागे हम बस करवटो में ज़िम्मेदारी थी|
मुश्किल से जूता पाव में आता भी कैसे है,
बाप का वो जूता है और हमारी सिर्फ उधारी है।
गमों पर मुस्कान पहनकर हम निकले है बाजार में,
कुछ ख़्वाब जो बेचे तो खरीदी दो वक्त की रोटी है।
इस कदर रात होती है के कब्र में हम सोते है,
दिन जो निकल जाए फिर जिंदा होकर फिर लढ़ते है।
©Tausif Kazi
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