इश्क ही नही फिर धड़कनों में धड़कना कैसा
पुकारने की कोई सूरत नहीं फिर जिस्म फड़कना कैसा
रफ्ता रफ्ता उतरती रही पपड़ी दीवारों से
ऐसी दीवार के साए में सिमटना कैसा
छत पे रहती है जीने से उतरती नही
फिर ऐसी धूप के जिस्म से लिपटना कैसा
प्यार तो करती है हवा जब छू के गुजर जाती है
फिर ऐसी बेमानी बातों से निपटना कैसा
Dr KR Prbodh
©K R Prbodh
बेमानी मोहब्बत