हर रोज़ एक नई ऊर्जा से भर,
मैं अपनी भोर का स्वागत करता हूं,
आंखों को हतेलियो की ऊर्जा का स्मरण करवाके , मैं फर्श को नमन करता हूं,
भर के तेवर जोश के , कस लेता हुं कमर, उम्मीदों की भीड़ में , मैं खुद को ढूंढता फिरता हूं,
मैं सफलता का एक किस्सा फिर बुनता हूं,
अपने हौसलों को ब-दस्तूर कर, अपनी मंजिलों से कुर्बत हो ,एक ढाढस हिम्मत की बांध रण को निकल जाता हूं,
जीवन की अड़चने भूल , जरूरतों को जुस्तजू करता हुं,
ताकि खड़ा हो सकू इस दुनियां की मजबूत दीवारों के बीच, बिना इज्तीरार हो खुद को आगे धकेल सकू इन भटकती भूल भुलैया जैसी राहों में ।
©Saurabh Mishra
#nightshayari #poem #Shayar #Shayar #writing #baatein #Galib