आज फिर कुछ बूंदें बरस रही हैं, शायद ये धरा फिर पान | हिंदी शायरी

"आज फिर कुछ बूंदें बरस रही हैं, शायद ये धरा फिर पानी को तरस रही है। माह दिसंबर धो जाएगा सभी अंधेरों को, शायद अबकी जनवरी में कोई तमस नहीं है। आएगा फिर एक नया वर्ष, ये आंखें भी उसी के इंतजार में हैं, सिवाय इसके और इनमें कोई कसक नहीं है। ©Deepa Ruwali"

 आज फिर कुछ बूंदें बरस रही हैं,
शायद ये धरा फिर पानी को तरस रही है।
  माह दिसंबर धो जाएगा सभी अंधेरों को,
शायद अबकी जनवरी में कोई तमस नहीं है।
आएगा फिर एक नया वर्ष,
  ये आंखें भी उसी के इंतजार में हैं,
सिवाय इसके और इनमें कोई कसक नहीं है।

©Deepa Ruwali

आज फिर कुछ बूंदें बरस रही हैं, शायद ये धरा फिर पानी को तरस रही है। माह दिसंबर धो जाएगा सभी अंधेरों को, शायद अबकी जनवरी में कोई तमस नहीं है। आएगा फिर एक नया वर्ष, ये आंखें भी उसी के इंतजार में हैं, सिवाय इसके और इनमें कोई कसक नहीं है। ©Deepa Ruwali

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