चिंताओं का बोझ अकारण सर पे ढोते, हल्के हो जाते गर | हिंदी कविता

"चिंताओं का बोझ अकारण सर पे ढोते, हल्के हो जाते गर अपने मन को धोते, त्याग कपट आडंबर और शंकाएं मन से, सरल सहज हो जाते और चैन से सोते, हुई जहां तक़रार बात ना दिल पर लेते, कष्टों से बच जाते अगर न आपा खोते, सागर से मोती निकाल पाना था सम्भव, गहराई में जाकर अगर लगाते गोते, सागर तट पर है लहरों का शोर-शराबा, मिलता उन्हें सुकून हृदय में करुणा बोते, लहराती फ़सलें मस्ती से झूमे 'गुंजन', करे किसानी और खेत में हल भी जोते, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra"

 चिंताओं का बोझ अकारण सर पे ढोते,
हल्के हो जाते  गर अपने  मन को धोते,

त्याग कपट आडंबर और शंकाएं मन से,
सरल  सहज  हो जाते और चैन से सोते,

हुई जहां तक़रार बात ना दिल पर लेते,
कष्टों से बच जाते अगर न आपा खोते,

सागर से मोती निकाल पाना था सम्भव,
गहराई  में  जाकर  अगर  लगाते  गोते,

सागर तट पर है  लहरों का शोर-शराबा,
मिलता उन्हें सुकून हृदय में करुणा बोते,

लहराती  फ़सलें  मस्ती से  झूमे 'गुंजन',
करे किसानी और खेत में हल भी जोते,
   ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
           प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra

चिंताओं का बोझ अकारण सर पे ढोते, हल्के हो जाते गर अपने मन को धोते, त्याग कपट आडंबर और शंकाएं मन से, सरल सहज हो जाते और चैन से सोते, हुई जहां तक़रार बात ना दिल पर लेते, कष्टों से बच जाते अगर न आपा खोते, सागर से मोती निकाल पाना था सम्भव, गहराई में जाकर अगर लगाते गोते, सागर तट पर है लहरों का शोर-शराबा, मिलता उन्हें सुकून हृदय में करुणा बोते, लहराती फ़सलें मस्ती से झूमे 'गुंजन', करे किसानी और खेत में हल भी जोते, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra

#अगर न आपा खोते#

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