होली बात गयी कि बाते उसकी अक्सर इस कदर घूम जाती है ;
सुनना भी मुश्किल है ,सुनाना भी मुश्किल है।
आँख मुझे घूर घूर कर यूँ देखा करती है;
हंसना भी मुश्किल है, हँसाना भी मुश्किल है।
तनख्वाह तो सीमित है,करूँ कैसे ख्वाहिशे पूरी;
लुटना भी मुश्किल है , लुटाना भी मुश्किल है।
एक पत्नी को कुदरत ने, बनाया इस कदर यारो;
समझना भी मुश्किल है,समझाना भी मुश्किल है।
©Hitendra