तुम सूर्य उदय होते ही याद आती हो, तुम दोपहर के चार | हिंदी कविता

"तुम सूर्य उदय होते ही याद आती हो, तुम दोपहर के चार बजे याद आती हो, कभी कभी तो रात में भी याद आती हो, असल में तुम ही मेरा पहला प्यार हो, तुम चाहे कितनी भी कड़क क्यूं ना हो,मैं तुम्हारे लिए नरम बना रहता हूं, मैं तुम्हे लबों से छू कर हलक से होकर मन में उतारता हूं, जबसे मैने समझना सिखा है,तबसे ही तुम मुझे भाय हो, तुम और कोई नहीं मेरी प्यारी चाय हो। ✍️ रोहित वर्मा ©rohit verma"

 तुम सूर्य उदय होते ही याद आती हो,
तुम दोपहर के चार बजे याद आती हो,
कभी कभी तो रात में भी याद आती हो,
असल में तुम ही मेरा पहला प्यार हो,
तुम चाहे कितनी भी कड़क क्यूं ना हो,मैं तुम्हारे लिए नरम बना रहता हूं,
मैं तुम्हे लबों से छू कर हलक से होकर मन में उतारता हूं,
जबसे मैने समझना सिखा है,तबसे ही तुम मुझे भाय हो,
तुम और कोई नहीं मेरी प्यारी चाय हो।
✍️ रोहित वर्मा

©rohit verma

तुम सूर्य उदय होते ही याद आती हो, तुम दोपहर के चार बजे याद आती हो, कभी कभी तो रात में भी याद आती हो, असल में तुम ही मेरा पहला प्यार हो, तुम चाहे कितनी भी कड़क क्यूं ना हो,मैं तुम्हारे लिए नरम बना रहता हूं, मैं तुम्हे लबों से छू कर हलक से होकर मन में उतारता हूं, जबसे मैने समझना सिखा है,तबसे ही तुम मुझे भाय हो, तुम और कोई नहीं मेरी प्यारी चाय हो। ✍️ रोहित वर्मा ©rohit verma

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