हवा भी चली है, मगर मनचली है
इधर मौसम में बहुत खलबली है
धूप में तो जिंदगी कट पा रही थी
बिना धूप के पांव ज्यादा जली है
बहुत थी तमन्ना मुझको हवाओं की
मगर थी नहीं खबर अपने गांव की
जब उड़ने लगे सर से छांव मेरे
डगमगाए जब तैरते नांव मेरे
तो मालूम हुआ की कुछ तो गलत है
ये आंधी आ चुकी है, हवा की शकल में
जो दूरियां मैंने थे अपनों से बनाए
उनके हीं बीज आज हैं बैठे बगल में
इस आग में खुद को झोंका है खुद हीं
अब कोई चारा नहीं है, जलना पड़ेगा
बहुत भूल करके जो खोया हुआ था
अब होश आ चुका है, संभालना पड़ेगा
वक्त ने जितने शौकत उधार दिए थे
उनका किश्त मुश्किलों में भरना पड़ेगा
ये तपिश मुझे खूब समझा रहे हैं
इस नौबत की आंधी से डरना पड़ेगा
अब कोई दूसरा मौका नहीं है यहां पर
इसी वक्त की आंधी में गुजरना पड़ेगा
मेरी गलतियों से ये आंधी चली है
हवा की शकल में बहुत खलबली है
©Shivam Veer
#जिंदगी