White मंज़िल पे पहुँचने का मुझे शौक़ हुआ तेज़ रस्त | हिंदी Poetry

"White मंज़िल पे पहुँचने का मुझे शौक़ हुआ तेज़ रस्ता मिला दुश्वार तो मैं और चला तेज़ हाथों को डुबो आए हो तुम किस के लहू में पहले तो कभी इतना न था रंग-ए-हिना तेज़ मुझ को ये नदामत है कि मैं सख़्त-गुलू था तुझ से ये शिकायत है कि ख़ंजर न किया तेज़ चल मैं तुझे रफ़्तार का अंदाज़ सिखा दूँ हम-राह मिरे सुस्त-क़दम मुझ से जुदा तेज़ अफ़्सुर्दगी-ए-गुल पे भरीं किस ने ये आहें चलती है सर-ए-सहन-ए-चमन आज हवा तेज़ अब मुझ को नज़र फेर के इक जाम दे साक़ी फिर कौन सँभालेगा अगर नश्शा हुआ तेज़ इंसान के हर ग़म पे 'सबा' चोट लगी है शीशे के चटख़ने की भी थी कितनी सदा तेज़ ©Jashvant"

 White मंज़िल पे पहुँचने का मुझे शौक़ हुआ तेज़
रस्ता मिला दुश्वार तो मैं और चला तेज़

हाथों को डुबो आए हो तुम किस के लहू में
पहले तो कभी इतना न था रंग-ए-हिना तेज़

मुझ को ये नदामत है कि मैं सख़्त-गुलू था
तुझ से ये शिकायत है कि ख़ंजर न किया तेज़

चल मैं तुझे रफ़्तार का अंदाज़ सिखा दूँ
हम-राह मिरे सुस्त-क़दम मुझ से जुदा तेज़

अफ़्सुर्दगी-ए-गुल पे भरीं किस ने ये आहें
चलती है सर-ए-सहन-ए-चमन आज हवा तेज़

अब मुझ को नज़र फेर के इक जाम दे साक़ी
फिर कौन सँभालेगा अगर नश्शा हुआ तेज़

इंसान के हर ग़म पे 'सबा' चोट लगी है
शीशे के चटख़ने की भी थी कितनी सदा तेज़

©Jashvant

White मंज़िल पे पहुँचने का मुझे शौक़ हुआ तेज़ रस्ता मिला दुश्वार तो मैं और चला तेज़ हाथों को डुबो आए हो तुम किस के लहू में पहले तो कभी इतना न था रंग-ए-हिना तेज़ मुझ को ये नदामत है कि मैं सख़्त-गुलू था तुझ से ये शिकायत है कि ख़ंजर न किया तेज़ चल मैं तुझे रफ़्तार का अंदाज़ सिखा दूँ हम-राह मिरे सुस्त-क़दम मुझ से जुदा तेज़ अफ़्सुर्दगी-ए-गुल पे भरीं किस ने ये आहें चलती है सर-ए-सहन-ए-चमन आज हवा तेज़ अब मुझ को नज़र फेर के इक जाम दे साक़ी फिर कौन सँभालेगा अगर नश्शा हुआ तेज़ इंसान के हर ग़म पे 'सबा' चोट लगी है शीशे के चटख़ने की भी थी कितनी सदा तेज़ ©Jashvant

deep poetry in urdu#Tez

People who shared love close

More like this

Trending Topic