खुद में किसी ओर का अक्श ढूंढते ढूंढते | हिंदी शायरी

"खुद में किसी ओर का अक्श ढूंढते ढूंढते मै खुद को खो बैठा इक शख्स ढूढते ढूढते उड़ते धुएं में उसकी तस्वीर क्या बनीं इक रोज़ मै सिगरेट का आदी हो गया कश फूकते फूकते पहले उसकी आंखों से तो अब बोतल से पीता हूँ यूं ही मै हो गया मैकश उसका शहर घूमते घूमते ना जाने कैसे इतनी जल्दी सबको भूल जाते हैं लोग मेरी तो उम्र बीत गयी वो इक दिलकश भूलते भूलते मैकशः दारू पीने का आदी ©Baljit Singh"

 खुद में किसी ओर का अक्श ढूंढते ढूंढते                               मै खुद को खो बैठा इक शख्स ढूढते ढूढते 

उड़ते धुएं में उसकी तस्वीर क्या बनीं इक रोज़ 
मै सिगरेट का आदी हो गया कश फूकते फूकते 

पहले उसकी आंखों से तो अब बोतल से पीता हूँ 
यूं ही मै हो गया मैकश उसका शहर घूमते घूमते

ना जाने कैसे इतनी जल्दी सबको भूल जाते हैं लोग 
मेरी तो उम्र बीत गयी वो इक दिलकश भूलते भूलते 

मैकशः दारू पीने का आदी

©Baljit Singh

खुद में किसी ओर का अक्श ढूंढते ढूंढते मै खुद को खो बैठा इक शख्स ढूढते ढूढते उड़ते धुएं में उसकी तस्वीर क्या बनीं इक रोज़ मै सिगरेट का आदी हो गया कश फूकते फूकते पहले उसकी आंखों से तो अब बोतल से पीता हूँ यूं ही मै हो गया मैकश उसका शहर घूमते घूमते ना जाने कैसे इतनी जल्दी सबको भूल जाते हैं लोग मेरी तो उम्र बीत गयी वो इक दिलकश भूलते भूलते मैकशः दारू पीने का आदी ©Baljit Singh

खुद को खो बैठा

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