खुद में किसी ओर का अक्श ढूंढते ढूंढते मै खुद को खो बैठा इक शख्स ढूढते ढूढते
उड़ते धुएं में उसकी तस्वीर क्या बनीं इक रोज़
मै सिगरेट का आदी हो गया कश फूकते फूकते
पहले उसकी आंखों से तो अब बोतल से पीता हूँ
यूं ही मै हो गया मैकश उसका शहर घूमते घूमते
ना जाने कैसे इतनी जल्दी सबको भूल जाते हैं लोग
मेरी तो उम्र बीत गयी वो इक दिलकश भूलते भूलते
मैकशः दारू पीने का आदी
©Baljit Singh
खुद को खो बैठा