Unsplash हाथ आजाता था दोस्तो का कांधे पर
जब आंखे हम कभी नम रखते थे
खुशी से झूम उठते थे सभी दोस्त
जब स्कूल में हम भी क़दम रखते थे
वो पढ़ाई का दौर भी क्या दौर था
जेब में हम भी क़लम रखते थे
मस्त मौला जैसी ज़िंदगी गुजरती थी हमारी
न दिल में कोई ख़ाहिश न दिल में कोई ग़म रखते थे
जरूरतें तब भी पूरी हुआ करती थी
न जेब में हम कोई रकम रखते थे
सख्त मुफलिसी के दौर में भी आलम
बस दिल में जीने की उमंग रखते थे
अपनी आशिकी पर इतराने वाले लोगों
किसी दौर में हम भी सनम रखते थे
©Shoheb alam shayar jaipuri
#Book दोस्त शायरी