तन्हाई
वीरान पड़ी हैं जीवन की राहे
पल पल दिल भरता हैं आहे
धिक्कार रहा ये मन खुद को,
क्यों फेरी मैं अपनी ये निगाहें।
जी करता फिर उन लम्हों को
जी भर जिलूँ भूल के सबको
फिर से माही बन जाऊँ मैं ,
ढूँढ लूँ बिछड़े निर्झरिणी को।
हर मौसम पतझड़ ही छाए
जीवन की बगिया सूखती जाए
एक झलक बसंत को तरसे नैना,
हाय! इस मन को कुछ ना भाए ।
✍......मोHiनी
#तन्हाई 😔