छोटी छोटी आंखो में बड़े बड़े ख्वाब सजा रहा हूं। मे | हिंदी शायरी

"छोटी छोटी आंखो में बड़े बड़े ख्वाब सजा रहा हूं। में अपनी किस्मत के आगे कितना गिड़गिड़ा रहा हूं। मुश्किलों की चोट से टुकड़े टुकड़े हो गया वजूद मेरा। इसके बाद भी देखो कितना जुड़ा हुआ नज़र आ रहा हूं। है फिकर मुझे भी योम ए कयामत की पर। इस बेवफ़ा दुनिया के लिए जहन्नुम के करीब जा रहा हूं। है अमावस की रात जितनी तारिकी जिंदगी में। रोशनी के खातिर अपने अश्को से चिराग़ जला रहा हूं। कोई शिकायत नहीं किसी से मुझे अब ~सनम। में तो बस अपने कर्मो का फल पा रहा हूं। ©Mohd Shuaib Malik~सनम"

 छोटी छोटी आंखो में बड़े बड़े ख्वाब सजा रहा हूं।
में अपनी किस्मत के आगे कितना  गिड़गिड़ा रहा हूं।
मुश्किलों की चोट से टुकड़े टुकड़े हो गया वजूद मेरा।
इसके बाद भी देखो कितना जुड़ा हुआ नज़र आ रहा हूं।
है फिकर मुझे भी योम ए कयामत की पर।
इस बेवफ़ा दुनिया के लिए जहन्नुम के करीब जा रहा हूं।
है अमावस की रात जितनी तारिकी जिंदगी में।
रोशनी के खातिर अपने अश्को से चिराग़ जला रहा हूं।
कोई शिकायत नहीं किसी से मुझे अब ~सनम।
में तो बस अपने कर्मो का फल पा रहा हूं।

©Mohd Shuaib Malik~सनम

छोटी छोटी आंखो में बड़े बड़े ख्वाब सजा रहा हूं। में अपनी किस्मत के आगे कितना गिड़गिड़ा रहा हूं। मुश्किलों की चोट से टुकड़े टुकड़े हो गया वजूद मेरा। इसके बाद भी देखो कितना जुड़ा हुआ नज़र आ रहा हूं। है फिकर मुझे भी योम ए कयामत की पर। इस बेवफ़ा दुनिया के लिए जहन्नुम के करीब जा रहा हूं। है अमावस की रात जितनी तारिकी जिंदगी में। रोशनी के खातिर अपने अश्को से चिराग़ जला रहा हूं। कोई शिकायत नहीं किसी से मुझे अब ~सनम। में तो बस अपने कर्मो का फल पा रहा हूं। ©Mohd Shuaib Malik~सनम

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