ये जद्द्दोजहद, नाकामियां
मुश्किल हैं अब आसानियां।
मैं भीड़ में तो हूँ मगर,
घेरे हैं बस तन्हाईयां।।
ये ह्रदय मेरा व्योम सा,
सम्मुख खड़ा विलोम सा।
था साधना में रुख मेरा,
जो है अभी अनुलोम सा।।
अब खुद में जिंदा हूँ मगर,
बाकी नहीं चिंगरियाँ।
अब मुझसे छिपती फिर रहीं,
मेरी ही ये परछाईयां।।......
©Abhayraj Singh
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