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रह - ऐ - जां में बयार सपना है
अब तो दिल का करार सपना है
अब के उम्मीद में जली आँखे
फिर करूँ जां निसार सपना है
जख्म - ऐ - वस्ल भर न पायेंगे
उन पे अब ऐतबार सपना है
दाग इसयाँ के छुपते किसके है
ढाँक लें गम गुसार सपना है
कौन सी रुत ख़ुशी लेकर आई
हो बसंत या बहार सपना है
कैसे कहदूँ नहीं है मुहब्बत अब
दिल न हो बेक़रार सपना है
(लक्षमण दावानी जबलपुर✍️)
24/10/2016
रह-ऐ-जां - ज़िन्दगी की राह
दाग इसयाँ - पाप के दाग
©laxman dawani
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