White आजकल खुद को बहुत जकड़ा हुआ पाता हूँ मैं। बंध | हिंदी विचार

"White आजकल खुद को बहुत जकड़ा हुआ पाता हूँ मैं। बंध गया हूँ दायरे में खुल नहीं पाता हूँ मैं। हो नहीं पाता हूँ बाहर उलझनों की क़ैद से- ज़िन्दगी के साथ खुल कर रह नहीं पाता हूँ। बोझ इक मन पर लिए हर दिन जिए जाता हूँ मैं। सोच के अंधे कुंए में रोज़ खो जाता हूँ मैं। है नहीं मिलता किनारा, हल नहीं मिलता कोई- ढूंढने में ख़ुद को ख़ुद से शून्य हो जाता हूँ मैं। कशमकश से मन भरा है कुछ न कर पाता हूँ। वक्त के साँचे में क्यूँ कर ढल नहीं पाता हूँ मैं। हो रहा है जो उसे स्वीकार करता जा औ चल- सोच मत पगले अधिक मन को भी समझाता हूँ मैं। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©रिपुदमन झा 'पिनाकी'"

 White आजकल खुद को बहुत जकड़ा हुआ पाता हूँ मैं।
बंध  गया  हूँ  दायरे  में   खुल  नहीं  पाता  हूँ  मैं।
हो  नहीं  पाता  हूँ  बाहर  उलझनों  की  क़ैद  से-
ज़िन्दगी  के  साथ  खुल  कर  रह  नहीं पाता  हूँ।

बोझ इक मन पर लिए हर दिन जिए जाता हूँ मैं।
सोच  के  अंधे  कुंए  में   रोज़  खो  जाता हूँ  मैं।
है  नहीं  मिलता किनारा, हल  नहीं मिलता  कोई-
ढूंढने  में  ख़ुद  को ख़ुद से  शून्य  हो  जाता हूँ  मैं।

कशमकश से मन भरा है कुछ न कर पाता हूँ।
वक्त के साँचे में क्यूँ कर ढल नहीं पाता हूँ मैं।
हो रहा है जो उसे स्वीकार करता जा औ चल-
सोच मत पगले अधिक मन को भी समझाता हूँ मैं।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White आजकल खुद को बहुत जकड़ा हुआ पाता हूँ मैं। बंध गया हूँ दायरे में खुल नहीं पाता हूँ मैं। हो नहीं पाता हूँ बाहर उलझनों की क़ैद से- ज़िन्दगी के साथ खुल कर रह नहीं पाता हूँ। बोझ इक मन पर लिए हर दिन जिए जाता हूँ मैं। सोच के अंधे कुंए में रोज़ खो जाता हूँ मैं। है नहीं मिलता किनारा, हल नहीं मिलता कोई- ढूंढने में ख़ुद को ख़ुद से शून्य हो जाता हूँ मैं। कशमकश से मन भरा है कुछ न कर पाता हूँ। वक्त के साँचे में क्यूँ कर ढल नहीं पाता हूँ मैं। हो रहा है जो उसे स्वीकार करता जा औ चल- सोच मत पगले अधिक मन को भी समझाता हूँ मैं। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

#कशमकश

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