बीती यादों की पोटली हरे और लाल रंग से  ओतप्रोत लम् | हिंदी कविता

"बीती यादों की पोटली हरे और लाल रंग से  ओतप्रोत लम्हें मुट्ठी में दबे रेत  हाय रे फिसलती जिंदगी दिन महीना साल गुजर रहा  लम्हा लम्हा धरा पर .... नाटक पर नाटक पर नाटक जीने के लिये या उम्र बिताने के लिये   कितने नाटक पर नाटक खेल रहे  कभी हम दर्शक बनकर  तालियां बाँट रहें  कभी हम किरदार बन कर  तालियां बटोर रहें  रंगमंच की धरा पर ...... #निशीथ ©Nisheeth pandey "

बीती यादों की पोटली हरे और लाल रंग से  ओतप्रोत लम्हें मुट्ठी में दबे रेत  हाय रे फिसलती जिंदगी दिन महीना साल गुजर रहा  लम्हा लम्हा धरा पर .... नाटक पर नाटक पर नाटक जीने के लिये या उम्र बिताने के लिये   कितने नाटक पर नाटक खेल रहे  कभी हम दर्शक बनकर  तालियां बाँट रहें  कभी हम किरदार बन कर  तालियां बटोर रहें  रंगमंच की धरा पर ...... #निशीथ ©Nisheeth pandey

बीती यादों की पोटली

हरे और लाल रंग से 

ओतप्रोत लम्हे

मुट्ठी में दबे रेत 

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