मन के अनेक दरख़्तों पर
इतराती विचारों की लिपटी यूँ बेलें
जैसे कुछ नया रखा
दिल की पुरानी टहनी पर
अहसास-मन-जंगल यूँ पाता-विस्तार..! सुनीता के दिल से follow me on You Tube @Dr Sunita Sharma मन-जंगल-झगड़े-झुरमुट में
जब-तब कांटों से होती यूँ मुलाक़ात
उलझी-झाड़ियों सी कहीं जब
दीख जाती मुझे तेरी-मेरी तकरार
भावों के दलदल में तब
धंसती यूँ तन्हाई सी खामोशी जब ..! अहसास ऐ मन जंगल
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