वाणी की दीनता अपनी मैं चीन्हता ! कहने में अर्थ नह | हिंदी विचार

"वाणी की दीनता अपनी मैं चीन्हता ! कहने में अर्थ नहीं कहना पर व्यर्थ नहीं मिलती है कहने में एक तल्लीनता ! आस पास भूलता हूँ जग भर में झूलता हूँ सिन्धु के किनारे जैसे कंकर शिशु बीनता ! कंकर निराले नीले लाल सतरंगी पीले शिशु की सजावट अपनी शिशु की प्रवीनता ! भीतर की आहट भर सजती है सजावट पर नित्य नया कंकर क्रम क्रम की नवीनता ! कंकर को चुनने में वाणी को बुनने में कोई महत्व नहीं कोई नहीं हीनता ! केवल स्वभाव है चुनने का चाव है जीने की क्षमता है मरने की क्षीणता ! ©ABHISHEK SHUKLA"

 वाणी की दीनता
अपनी मैं चीन्हता !

कहने में अर्थ नहीं
कहना पर व्यर्थ नहीं
मिलती है कहने में
एक तल्लीनता !

आस पास भूलता हूँ
जग भर में झूलता हूँ
सिन्धु के किनारे जैसे
कंकर शिशु बीनता !

कंकर निराले नीले
लाल सतरंगी पीले
शिशु की सजावट अपनी
शिशु की प्रवीनता !

भीतर की आहट भर
सजती है सजावट पर
नित्य नया कंकर क्रम
क्रम की नवीनता !

कंकर को चुनने में
वाणी को बुनने में
कोई महत्व नहीं
कोई नहीं हीनता !

केवल स्वभाव है
चुनने का चाव है
जीने की क्षमता है
मरने की क्षीणता !

©ABHISHEK SHUKLA

वाणी की दीनता अपनी मैं चीन्हता ! कहने में अर्थ नहीं कहना पर व्यर्थ नहीं मिलती है कहने में एक तल्लीनता ! आस पास भूलता हूँ जग भर में झूलता हूँ सिन्धु के किनारे जैसे कंकर शिशु बीनता ! कंकर निराले नीले लाल सतरंगी पीले शिशु की सजावट अपनी शिशु की प्रवीनता ! भीतर की आहट भर सजती है सजावट पर नित्य नया कंकर क्रम क्रम की नवीनता ! कंकर को चुनने में वाणी को बुनने में कोई महत्व नहीं कोई नहीं हीनता ! केवल स्वभाव है चुनने का चाव है जीने की क्षमता है मरने की क्षीणता ! ©ABHISHEK SHUKLA

#fullmoon

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