सजने लगा है धाम, कण-कण बोले राम, धर्म कर्म अभ | हिंदी कविता

"सजने लगा है धाम, कण-कण बोले राम, धर्म कर्म अभिराम, स्वयं को रमाइए।‌ राम राम सीताराम, पावन अयोध्या धाम, दीपावली अविराम, गेह में मनाइए।। जिनकी विषैली चाम,राग द्वेष आठों याम, कैसे बनें निष्काम, उनको भुलाइए। जिनको हैं प्यारे दाम, लेते नहीं राम नाम, काल्पना कहें जो राम,अयोध्या दिखाइए।। ©Dr Virendra Pratap Singh Bhramar"

 सजने  लगा  है धाम, कण-कण बोले राम,
धर्म  कर्म   अभिराम,  स्वयं  को   रमाइए।‌

राम  राम  सीताराम, पावन  अयोध्या धाम,
दीपावली    अविराम,  गेह    में   मनाइए।।

जिनकी विषैली चाम,राग  द्वेष आठों याम,
कैसे    बनें    निष्काम,   उनको   भुलाइए।

जिनको  हैं  प्यारे दाम, लेते नहीं राम नाम,
काल्पना कहें जो राम,अयोध्या दिखाइए।।

©Dr Virendra Pratap Singh Bhramar

सजने लगा है धाम, कण-कण बोले राम, धर्म कर्म अभिराम, स्वयं को रमाइए।‌ राम राम सीताराम, पावन अयोध्या धाम, दीपावली अविराम, गेह में मनाइए।। जिनकी विषैली चाम,राग द्वेष आठों याम, कैसे बनें निष्काम, उनको भुलाइए। जिनको हैं प्यारे दाम, लेते नहीं राम नाम, काल्पना कहें जो राम,अयोध्या दिखाइए।। ©Dr Virendra Pratap Singh Bhramar

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