किताब-ए-इश्क़ में
तुमको मोहब्बत पढ़ाऊँगा।
दिल की कापी पे,
तुमसे मोहब्बत लिखवाऊँगा।।
वो जो ग़ज़ल,
मैंने तुम्हारे हुस्न पर लिखी है।
तुम जब मिलने आओगी,
उसे पढ़ के मोहब्बत की दासता सुनाऊँगा।।
उसे शिकायत है,
कि मैं क्यूँ ख़ामोश रहता हूँ।
इक रोज़,
उसे गले लगाकर अपनी मोहब्बत बताऊँगा।।
©Prem_pyare
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