""बेरोजगार के दिल की आवाज ""
हु मै बेरोजगार कैसे कहूं,देते है हर पल लोग ताना वो कैसे सहू
की पढ़ाई मैंने भी है ,की है हासिल degree भी
degree का कोई मोल नहीं है
पड़ी है बनकर एक कागज मेरी अलमारी में
बड़ रही है जनसंख्या इतनी है भागम भाग दुनिया में इतनी
हर कोई निकल रहा है घर से एक नौकरी की आस में
है मिल नही रहे है रोजगार अब तो हाल बुरे है हर बेरोजगार के
सोचे करे अब खुद का कुछ डाल ले कोई दुकान खुद की
पर लाये कहा से पैसा इतना हम मध्यमवर्गी परिवार के बेरोजगार है
क्या करे अब उलझे से है खुद में ,
कैसे करे सपने पूरे इस ख्याल में है डूबे
कभी चाह थी परिवार की जिम्मेदारी उठाने की
आज उनपर ही आश्रित हो गए है
चुभ रहे है ताने बेरोजगारी के अब घाव गहरे हो गए है
टूट रहा है मनोबल अब तो रुआसा से हम हो गए है
हो रहे है dipressoion का शिकार अब
आने लगे है ख्याल बुरे दिमाग में अब
कर दे जीवन खत्म आने लगा अब तो ये ख्याल तक हमे
दे किसे दोष बेरोजगारी के लिए
जनसंख्या, प्रशासन,संसाधन ,हर कोई है जिम्मेदार अब
हम बेरोजगार है साहब कैसे करे जीवन यापन हम
©Neel.
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