एक दौर ऐसा था तेरे इत्र की खुशबू मेरे बदन से आती थ | हिंदी शायरी

"एक दौर ऐसा था तेरे इत्र की खुशबू मेरे बदन से आती थी।। जब भी देखता मैं नजरें भर के तुम्हें, तूं शर्मा-सी जाती थी।। वो गली तुझे याद तो होगी , जब मैं तुझे मिलने बुलाता तूं मूझसे बेबाब होकर जो मिलने आती थी ।। तेरा गले मिलना और तुझे चूमना हर रोज का किस्सा था, तेरा आशिक न था, फिर भी तुम मेरे हो , नज़ाने क्यूं मुझपे इतना हक जताती थी।। एक दौर ऐसा था तेरे इत्र की खुशबू मेरे बदन से आती थी।। 🐈‍⬛🐈‍⬛🐈‍⬛🐈‍⬛🐈‍⬛ ©Shekhar suman Meghwal"

 एक दौर ऐसा था तेरे इत्र की खुशबू मेरे बदन से आती थी।।

जब भी देखता मैं नजरें भर के तुम्हें, तूं शर्मा-सी जाती थी।।

वो गली तुझे याद तो होगी , जब मैं तुझे मिलने बुलाता
तूं मूझसे बेबाब होकर जो मिलने आती थी ।।

तेरा गले मिलना और तुझे चूमना हर रोज का किस्सा था,
 तेरा आशिक न था, फिर भी तुम मेरे हो ,
नज़ाने क्यूं मुझपे इतना हक जताती थी।।

एक दौर ऐसा था तेरे इत्र की खुशबू मेरे बदन से आती थी।।
🐈‍⬛🐈‍⬛🐈‍⬛🐈‍⬛🐈‍⬛

©Shekhar suman Meghwal

एक दौर ऐसा था तेरे इत्र की खुशबू मेरे बदन से आती थी।। जब भी देखता मैं नजरें भर के तुम्हें, तूं शर्मा-सी जाती थी।। वो गली तुझे याद तो होगी , जब मैं तुझे मिलने बुलाता तूं मूझसे बेबाब होकर जो मिलने आती थी ।। तेरा गले मिलना और तुझे चूमना हर रोज का किस्सा था, तेरा आशिक न था, फिर भी तुम मेरे हो , नज़ाने क्यूं मुझपे इतना हक जताती थी।। एक दौर ऐसा था तेरे इत्र की खुशबू मेरे बदन से आती थी।। 🐈‍⬛🐈‍⬛🐈‍⬛🐈‍⬛🐈‍⬛ ©Shekhar suman Meghwal

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