White जो जज़्बात बरसों से दबे हुए थे पन्नों में
क्यों तुमने आकर उनको बाहर निकाला !
मृत पड़ा था एक अधूरा जीवन किताबों में
क्यों जीने की उम्मीद दिलाकर लफ्जों में उतारा !
शब्द भी सांस लेते हैं जीवन उनमें भी होता है
तर्पण करके जज्बातों का क्यों नहीं हमको तारा !
थके हुए हैं जज़्बात मेरे उनको तुम सोने दो
मेरे जज्बातों की रूह को अब क्यों तुमने पुकारा !!
©Anjali Nigam
#पन्नों_के_देह_पर .....